फाइनेंस कम्पनी पर जबरन गाड़ी खींचकर ले जाने का आरोप, बिना नोटिस ग्रामीणों के वाहन उठाए
कोण्डागांव जिले में संचालित एक फाइनेंस कंपनी एक बार फिर विवादों में घिर गई है। कंपनी पर ईएमआई वसूली के नाम पर मनमानी करने और उच्चतम न्यायालय के आदेशों की अवहेलना का आरोप लगाया गया है। पीड़ितों का कहना है कि केवल 11 दिन की देरी पर फाइनेंस कंपनी ने बिना किसी पूर्व सूचना या नोटिस दिए उनके दोपहिया वाहन जबरन जब्त कर लिए।
घटना मर्दापाल क्षेत्र की है, जहाँ तीन अलग-अलग ग्रामीणों के वाहन फाइनेंस कंपनी द्वारा जब्त किए गए। मेढ़पाल निवासी अंगत राम की एचएफ डीलक्स बाइक, हंगवा निवासी धनीराम कोर्राम की एचएफ डीलक्स बाइक और नवागांव निवासी केदारनाथ पोयाम की बेटी दामेंद्री पोयाम की होंडा एक्टिवा स्कूटर, इन तीनों वाहनों की किस्त भुगतान में केवल 11 दिन की देरी हुई थी।
पीड़ितों का आरोप है कि फाइनेंस कंपनी ग्रामीणों को कम डाउन पेमेंट पर वाहन उपलब्ध कराती है, लेकिन बाद में उन पर भारी-भरकम किस्तें थोप दी जाती हैं। किस्त में मामूली देर होने पर कंपनी बिना किसी नोटिस या कानूनी प्रक्रिया का पालन किए सीधे वाहन उठाकर ले जाती है। यह पूरी कार्रवाई उच्चतम न्यायालय द्वारा निर्धारित प्रक्रिया का स्पष्ट उल्लंघन है।
क्या कहता है कानून और सुप्रीम कोर्ट का आदेश?
सुप्रीम कोर्ट का आदेश आइसीआइसीआइ बैंक विरुद्ध शांति देवी शर्मा व अन्य ICICI (2008) इस आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि फाइनेंस कंपनियां या बैंक यदि वाहन या संपत्ति को जब्त करते हैं, तो उन्हें केवल कानूनी प्रक्रिया (Due Process of Law) के तहत ही ऐसा करने की अनुमति है। बलपूर्वक या जबरदस्ती वाहन उठाना गैरकानूनी है। कोर्ट ने यह भी कहा था कि, बिना नोटिस या कस्टमर को उचित जानकारी दिए, किसी भी चल संपत्ति को जबरदस्ती उठाना संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार) का उल्लंघन है। भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा भी एनबीएफसी और बैंकों को निर्देशित किया गया है कि वसूली एजेंटों की आक्रामक और धमकाने वाली कार्यशैली गैरकानूनी और दंडनीय है। ग्राहकों को स्पष्ट नोटिस, समयसीमा और विकल्प देना अनिवार्य है।
इस घटना के बाद क्षेत्र में कंपनी के खिलाफ रोष फैल गया है। लोग इसे ग्रामीणों के साथ अन्याय और दमनकारी वसूली नीति करार दे रहे हैं। मीडिया द्वारा जब इस संबंध में फाइनेंस के शाखा प्रबंधक विकास से संपर्क करने का प्रयास किया गया, तो उन्होंने व्यस्त हूं कहकर कॉल काट दिया। वहीं शाखा में मौजूद कार्यवाहक प्रभारी दीपंकर ने मीडिया और पीड़ितों को एक साथ देखकर तत्काल ब्रांच से भाग निकले।
इस पूरे मामले ने फाइनेंस कंपनी की कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। अब देखना यह होगा कि जिला प्रशासन या संबंधित विभाग इस प्रकरण को लेकर क्या कार्रवाई करता है।
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